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Bikaner : जैन समाज के सभी संघों के प्रतिनिधि ढड्ढा कोटड़ी में एकत्रित हुए, क्षमा मांगी

  • साधु-साध्वियों ने क्षमा से जुड़े प्रसंग सुनाए

RNE Bikaner.

जैन महासभा, बीकानेर के तत्वावधान में आचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वर जी के सान्निध्य में ढढ्ढा कोटड़ी में सामुहिक क्षमापना कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सभी संघो के पदाधिकारियों ने सभी से क्षमायाचना की। आचार्य श्री पीयूष सागर सूरीश्वर जी ने गीतिका के माध्यम से क्षमा की महत्ता बतलाते हुए कहा कि मांगते है क्षमा, क्षमा कर दीजिए।

कार्यक्रम में साध्वी श्री प्रवन्जना श्री ने कहा कि क्षमा हृदय की करूणा है जीवन की साधना है। क्षमा केवल उच्चारण करने से नहीं होती, क्षमा हृदय की गहराईयों से की जाती है। साध्वी श्री जी ने पति पत्नी के उदाहरण से बताया कि पति पत्नी में झगड़ा हो गया। पत्नी ने पति को बहुत भला बुरा कहा यहां तक पति को जानवर भी कहा। पति एकदम शान्त भाव से उसकी बातें सुन रहा था, वह कुछ भी नहीं बोल रहा था। बहुत कुछ बोलने के बाद वह बाहर गई और सोचने लगी, उसका मन शान्त हुआ और वह सीधा अपने पति के पास जाकर माफी मांगने लगी। पत्नी ने अपने पति से कहा कि मैंने आपको बहुत कुछ कहा यहां तक की जानवर भी कहा तो भी आप शांत रहे? तब पति बोला की तुमने बिल्कुल सही कहा मैं जानवर ही हूं जब से तुम से शादी हुई है तब से मैं जानवर ही हूं। पत्नी बोली नहीं मेरी गलती हो गई पति बोला की तू मेरी क्या है जान और मैं तेरा वर तो हो गया ना जानवर। इस तरह दोनों ने एक दूसरे को क्षमा कर दिया। साध्वी श्री ने कहा कि क्षमा के पांच आयाम है उदारता का होना, प्रायश्चित करना, स्वीकृति का होना, समर्पण का होना, शपथ लेना। उन्होंने कहा कि क्षमा विरों का आभूषण है, क्षमा आत्मा की आवाज है।

तेरापंथ दुग्गड़ भवन से पधारी साध्वी श्री गुरूयशा जी ने फरमाया कि भारतीय संस्कृति पर्वों की रही है। अनेक पर्व आते है। उन सभी पर्वों में संवत्सरी महापर्व पर्वों का राजा है। इस पर्व में आदमी 84 लाखों जीवों खमत खामणा करता है। दुनियां में लगभग 300 धर्म संगठन हैं और सभी क्षमा को स्वीकार करते हैं।

खमत खामणा शब्द को क्षमा याचना से जोड़ा गया है। साध्वी श्री जी ने कहा कि क्षमा देने में अहंकार नहीं होने चाहिए क्षमा लेने में हीन भावना नहीं आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मन्दिर तोड़ो, मस्जिद तोड़ों लेकिन किसी का दिल मत तोड़ो। शान्ति निकेतन गंगाशहर से पधारी साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी ने कहा कि परिवर्तन शाश्वत है। संसार में दो प्रकार के पर्व होते हैं । आध्यत्मिक व सांसारिक पर्व होते है। व्यक्ति के नाम से जो पर्व जुड़ा होता है वह तात्कालिक पर्व होता है जो समाज से जुड़ा पर्व होता है वह त्रेकालिक पर्व होता है। उन्होंने कहा कि बाहर में जो कचरा होता है उसे झाडू से साफ किया जा सकता है उसी तरह हमारे भीतर जो कचरा है उसे प्रतिदिन प्रतिक्रमण करके या कम से कम साल में एक दिन संवत्सरी के दिन प्रतिक्रमण करके इस कचरे को साफ किया जा सकता है।

साध्वी प्रांजल प्रभा श्री ने कहा कि साधु छद्मस्त है श्रावक भी छद्मस्त है भूल तो किसी से भी हो सकती है उसकी क्षमायाचना कर लेनी चाहीए। क्षमापना पर्व हमें यही संदेश देता है कि ”क्षमायाचना का अवसर भीतर झांको रे। मन की सब गांठे खोलो रे ! बोल प्रेम के सब बोलो रे। उन्होंने कहा कि क्षमायाचना एक एरोप्लेन के समान है। इस प्लेन में बैठने से जैसे जैसे प्लेन ऊपर चढता है नीचे वाले सभी छोटे नजर आते है और जैसे जैसे नीचा आता है पूरा सामान्य रूप में दिखने लग जाता है। इसी तरह जैसे जैसे क्षमा का भाव आएगा व्यक्ति हल्का होता जाएगा। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने कहा कि सभी को मित्र मानों किसी को शत्रु मत समझों। सामुहिक क्षमापना पर्व कहता है कि इस दिन सभी का मन साफ सुथरा हो जाए और मन हल्का हो जाए। इस दिन कर्मरूपी शरीर को हल्का कर सके। सिद्ध बुद्ध व मुक्त बने।

मुनि श्री सम्यक रत्न सुरी जी ने कहा कि छद्मस्त अवस्था में आप और हम से चलते चलते गलती हो जाना स्वाभाविक है। हमें क्षमायाचना कर लेनी चाहिए। हमें नम्र बनना है,हमें उदार बनना है, हमें शक्तिशाली बनना है, हमें श्रमणशाली बनना है। यदि हम इन चार प्रकार के तत्वों के साथ जुड़ते है तो हम इस क्षमापना के पर्व को इसके रहस्य को हृदस्थ कर सकते है। दुश्मन यानी किसी दूसरे के मन आपके प्रति जो दूरभावनाएं है वो दुश्मनी का भाव कहलाता है।

मुनिश्री ने कहा कि भगवान महावीर का निर्माण का समय आया और भगवान पार्श्वनाथ के निर्माण समय आया तो उनके भी एक एक दूश्मन थे।भगवान महावीर के दुश्मन थे संगम आदि और भगवान पार्श्वनाथ के दुश्मन थे कमट आदि। ये दूश्मन यदि रह भी जाए तो हमारे आध्यत्मिक जगत में बाधक बनने वाला नहीं है। जैन दर्शन कहता है कि एक ही जीव के प्रति आपकी दुश्मनी रह गई निश्चित मानकर चलना त्रिकाल में आपको व हमको किसी को भी मोझ रूपी लक्ष्य को प्राप्त करने सफलता नहीं मिल सकती है। किसी भी व्यक्ति में अगर एक भी व्यक्ति के प्रति दुश्मनी का भाव नहीं है तो वह सच्चा साधक है।और अगर किसी भी व्यक्ति में किसी एक व्यक्ति के प्रति दुश्मनी का भाव रह गया तो वह सच्चा साधक नहीं है। तीन सुत्र प्रथम सुत्र विश्व के समस्त जीवों का कल्याण हो जाए दूसरा विश्व के तमाम जीवों के साथ मेरी मित्रता है। तीसरा खामेमी सव्वे जीवे। विश्व के सभी जीवों को खमाता हूं । इन तीन सुत्रों का स्मरण करते रहे तो हमारे मन की गांठे खुल जाएगी।

रांगड़ी चौक से पधारे मुनि श्री पुष्पेन्द्र जी ने फरमाया कि हमारे जिन शासन में किसी भी तरह के जीव को कष्ट देना मना है। कमट ने भगवान पार्श्वनाथ से बेर रखा लेकिन भगवान पार्श्वनाथ को किसी भी तरह का द्वेष नहीं था। भगवान महावीर स्वामी ने भी चंडकोशिक को भूये भूये करके तारा था। सभी में क्षमा की भावना होनी चाहिए।

कार्यक्रम की शुरूआत आचार्य श्री पीयूष सागर सुरी जी ने नवकार के मंगल मंत्रोच्चार से की। स्वगात उद्बोधन विनोद बाफना ने किया। विषय प्रवर्तन करते हुए विजय कोचर ने जैन महासभा का परिचय दिया तथा जैन महासभा द्वारा किये जाने वाले कार्यक्रमों की जानकारी दी।

दिगम्बर जैन मन्दिर प्रन्यास से धनेश जैन, जैन रत्न हीतेशी संघ से इन्द्रमल सुराणा, अरिहन्तमार्गी संघ से जयचन्दलाल सुखानी, तेरापंथी सभा बीकानेर से सुरपत बोथरा, तेरापंथी सभा गंगाशहर से जैन लूणकरण छाजेड़, खरतरगच्छ संघ से रतनलाल नाहटा, जैन यूथ क्लब से दर्शन सांड, जैन महिला विंग से मंजू बोथरा व कंचन छलाणी ने पार्श्वचन्दगच्छ सुरी से प्रताप रामपुरिया, साधुमार्गी संघ गंगाशहर भीनासर से चंचल बोथरा, साधुमार्गी संघ बीकानेर से हेमन्त सींगी, तपःगच्छ संघ से विकास सिरोहिया ने अपने संघ की और से क्षमायचना की। आभार जैन महासभा के महामंत्री मेघराज बोथरा ने किया तथा कार्यक्रम का कुशल संचालन जतनलाल संचेती ने किया।